भारत की मिट्टी
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR )ने भारत की मिट्टी को 8 वर्ग तथा 27 गौण वर्गो में बाटा है |
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR )ने भारत की मिट्टी को 8 वर्ग तथा 27 गौण वर्गो में बाटा है |
- जलोढ़ मिट्टी
- लाल पीली मिट्टी
- काली मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
- मरुस्थली मिट्टी
- लवणीय व् छारीय मिट्टी
- पर्वतीय व वनिये मिट्टी
- पीट या जैविक मिट्टी
- 43 % भाग पर विस्तृत है
- नदियों के द्वारा बहाकर लाकर नदी -घाटियों ,बाढ़ के मैदानों तथा डेल्टाई प्रदेशो में बिछा दी जाती है
- यह नदियों द्वारा अपरदित पदार्थो से निर्मित है
- सबसे अधिक उपजाऊ मिटटी है
- विस्तार-पंजाब से असम तक का मैदानी भाग,नर्मदा नदी,ताप्ती,महानदी,गोदावरी, कृष्णा,कावेरी नदी घाटियों में तथा केरल के तटवर्ती भागो में
- इस मिटटी के दो प्रकार है-
- 1 खादर-नवीन जलोढ़
- 2 बांगर- पुरानी जलोढ़
- नाइट्रोजन,फास्फोरस,ह्यूमस की कमी
- पोटाश,चुना की पर्याप्त मात्रा
- फ़सल-धान,गेहू,गन्ना,दलहन,तिलहन
लाल पीली मिट्टी :-
- 18%भाग पर
- फेरस ऑक्साइड के कारण लाल रंग
- जल योजित रूप से पिली दिखाई देती है
- निर्माण आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानों के विखंडन से हुआ ह
- अम्लीय प्रकृति की होती है
- नाइट्रोजन,फास्फोरस,ह्यूमस की कमी
- लोहा,एलुमिनियम की अधिकता
- विस्तार-तमिलनाडु,कर्नाटक,महाराष्ट्र,आंध्रप्रदेश,पूर्वी मध्यप्रदेश ,छत्तीसग़ढ़ ,ओडिसा,छोटानागपुर पठार
- फ़सल-मोठे अनाज ,दलहन,तिलहन
काली मिट्टी :-(वर्टिसोल ,काली कपासी ,रेगुर ,चरनोजम )
- 16% भाग पर
- निर्माण ज्वालामुखी लावा के अपच्छयन व अपरदन से हुआ है
- जल धारण करने की छमता अधिक होती है
- सूखने पर इसमें दरारे पड़ जाती है इसलिए ऐसे स्वतः जुताई वाली मिटटी भी कहते है
- नाइट्रोजन,फास्फोरस,ह्यूमस की कमी
- लोहा,ऐलुमिनियम,मैग्नीशियम ,चुना की अधिकता
- विस्तार-महाराष्ट्र (सर्वाधिक),द.पू.राजस्थान ,पश्चिमी मध्यप्रदेस ,कर्नाटक,आन्ध्रप्रदेस,
- द.पू.गुजरात ,तमिलनाडू,etc ..
- फ़सल-कपास,दलहन,तिलहन..
लैटेराइट मिट्टी :-
- 3.5% भाग पर
- लैटेराइट शब्द लेटिन भाषा के लेटर से बना है जिसका अर्थ ईंट होता है
- निर्माण आद्र व शुष्क मौसम में परिवर्तन से होने वाली निक्छालन प्रक्रिया (leaching action )से हुआ है
- जिसके परिणाम फलस्वरूप चूना व बालू ले कण रिस-रिस कर नीचे चले जाते है तथा मिट्टी के रूप में लोहा व ऐलुमिनियम के यौगिक शेष बचे रहते है
- नाइट्रोजन,फास्फोरस,चूना ,पोटाश की कमी
- अम्लीय प्रकृति की होती है
- भवन निर्माण के लिए उपयोगी
- विस्तार- केरल (सर्वाधिक ),महाराष्ट्र,असम ,पूर्वी व पश्चिमी घाट पर्वत ,राजमहल पहाड़ी ,मेघालय का पठार,कर्नाटक ,तमिलनाडू etc ...
- फ़सल-चाय,कहवा,सिनकोना,रबर,काजू..
मरूस्थली मिट्टी :-
- बलुई मिट्टी होती है
- नाइट्रोजन,ह्यूमस की कमी
- लोहा ,फॉस्फोरस प्रयाप्त
- रेतीली व लवणीय होती है
- विस्तार-राजस्थान व इसके निकटवर्ती द प पंजाब ,द.प.हरियाण ,गुजरात
- फ़सल- ज्वार ,बाजरा, मोटा अनाज,सरसो ,जो,तिलहन
लवणीय व छारीय मिट्टी :-(रेह ,कल्लर,रकार,चोपन,थुर )
- यह शुष्क जलवायु प्रदेश तथा जल निकास की सुविधा के आभाव वाले क्षेत्रों में पायी जाती है
- इस मिटटी में केशिका कर्षण (capillary action ) क्रिया द्वारा सोडियम,कैल्सियम,मैग्निसियम,के लवण ऊपरी सतह पर आजाते है जिससे मिट्टी की लवणता में वर्द्धि हो जाती है
- समुद्र तटीय क्षेत्रों में उच्च ज्वार के समय भी नमकीन जल भूमि की सतह पर आने से भी लवणीय मिटटी का निर्माण होता है
- नाइट्रोजन तथा चुने की कमी
- विस्तार-प. गुजरात (सर्वाधिक),द.हरियाणा ,द.पंजाब,प.राजस्थान,केरल,सुन्दरवन डेल्टाई भाग
- फ़सल -धान ,गन्ना ,अमरूद ,आंवला। ..
- नोट :-लवणता को कम करने के लिए जिप्सम व चुने का प्रयोग
पर्वतीय /वनिये मिट्टी :-
- यह पर्वतीय ढलानों पे विकसित होती है
- इसकी परत पतली होती है
- विस्तार अधिकांशत हिमालय क्षेत्र ,सह्याद्रि,पूर्वादरि प्रदेशो में
- ह्यूमस की कमी ,अम्लीय होती है
- अपरदन की समस्या से ग्रसित है
- पोटास ,फास्फोरस,चुने की कमी
- फ़सल -चाय ,कहवा ,मसाले,फ़ल
पीट या जैविक मिट्टी :-
- निर्माण दलदली क्षेत्रों में जैविक पदार्थों के जमाव से हुआ ह
- यह मिट्टी काली,भारी ,तथा अम्लीय होती है
- फॉस्फेट तथा पोटास की कमी
- जैव पदार्थों की अधिकता
- विस्तार-केरल का अलपुझा जिला ,उत्तराखंड का अल्मोड़ा,सुंदरवन डेल्टाई भाग
- केरल में इसे कारी कहते है
- फ़सल -धान ,गन्ना
नाइट्रोजन :फॉस्फोरस :पोटास
4 : 2 : 1
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